1947 की एक सुबह जब पूरा देश आज़ादी freedom की दहलीज़ पर खड़ा था और एक महान देश दो देशों में बंट चुका था, सब कुछ ठीक चल रहा था, तभी वह शाम भी आ गई जब एक महान नेता का सूर्य अस्त होने ही वाला था। बात 30 जनवरी 1948 के शाम की है, उधर दूर से ही पृथ्वी को हर रोज़ तकने वाला सूरज रोज़ की तरह अस्त हो रहा था और इधर विश्व के महान विचारकों में सबसे अव्वल गिने जाने वाले महात्मा गाँधी संध्याकाल की प्रार्थना को जाते हुए नाथूराम गोडसे के द्वारा चलायी गयी गोली का शिकार होकर शहीद हो गए, इस तरह उस शाम दो सूरज अस्त हुए।
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