हमारे देश भारत में विभिन्न तरह की वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। भारत में कई सारे ऐसे उत्पाद है जो भारत की संस्कृति को दर्शाते हैं। आपने कई वस्तुओं से संबंधित जीआई टैग GI Tag शब्द जरूर सुना होगा, आखिर ये जीआई टैग क्या है। दरअसल जीआई टैग किसी भी वस्तु की पहचान के लिए जरूरी होता है। जीआई टैग किसी वस्तु को तब दिया जाता है जब वह उत्पाद किसी क्षेत्र की विशेषता को दर्शाते हैं। जीआई टैग कानूनी तौर पर वस्तुओं के उत्पादन को एक पहचान प्रदान करती है। जीआई टैग उत्पाद के लिए एक प्रतीक चिन्ह के समान होता है। चलिए आज इसी जीआई टैग के बारे में सब कुछ विस्तार से जानते हैं।
जीआई टैग क्या है ?
Gi tag यानि Geographical Indication Tag और हिंदी में इसे भौगोलिक संकेत कहते हैं। यदि कोई वह वस्तु या उत्पाद किसी क्षेत्र की विशेषता को दर्शाते हैं तो उसे Gi tag दिया जाता है। जीआई टैग द्वारा किसी वस्तु या उत्पाद को एक अलग पहचान मिलती है। वर्ल्ड इंटलैक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गनाइजेशन World Intellectual Property Organization (WIPO) के मुताबिक जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग एक प्रकार का लेबल होता है जिसमें किसी प्रोडक्ट को विशेष भौगोलिक पहचान special geographical identity दी जाती है। किसी खास फसल, प्राकृतिक और मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स को यह टैग दिया जाता है। जीआई टैग भारत की विरासत, संस्कृति और पहचान को बचाने preserve culture and identity और उसे दुनियाभर में प्रसिद्ध करने का एक तरीका है। जीआई टैग का कानून असली प्रोडक्ट्स की गरिमा को बनाए रखने के लिए लाया गया। किसी भी उत्पाद को जीआई टैग मिलना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात होती है। क्योंकि जीआई टैग मिलने से उस वस्तु का महत्व काफी बढ़ जाता है और साथ ही उसकी कीमत भी बढ़ती है। जिस वस्तु को यह टैग मिलता है, वह उसकी विशेषता बताता है। जीआई टैग यह बताता है कि कोई उत्पाद विशेष कहां पैदा (Production Centre) हुआ है या कहां बनाया जाता है। जीआई टैग वो किस जगह का है, उसकी पहचान होते हैं। जीआई टैग किसी भी क्षेत्र की खास पहचान प्रॉडक्ट को देते हैं। जीआई टैग एक तरह का लेबल या टैग होता है जो किसी वस्तु विशेष को या किसी प्रोडक्ट को भौगोलिक पहचान पहचान देती हैं। जीआई टैग किसी उत्पाद को उसकी बनावट, पहचान और गुणवत्ता texture, identity and quality के आधार पर दिया जाता है।
जीआई टैग की शुरुआत कब हुई और जीआई टैग क्यों शुरू हुआ ?
राष्ट्रीय स्तर पर यह कार्य वस्तुओं का भौगौलिक सूचक, पंजीकरण और संरक्षण अधिनियम 1999, Geographical indications of goods ‘registration and protection act 1999’ के तहत किया गया है और यह सितंबर 2003 से लागू हुआ। यानि जीआई टैग की शुरुआत साल 2003 में भारत की धरोहर को बचाए रखने के लिए हुई थी। साल 2003 से वस्तुओं को उनकी गुणवत्ता के आधार पर जीआई टैग दिया जाने लगा। यह भारत की विरासत और पहचान को बचाने और उसे दुनियाभर में प्रसिद्ध करने की एक कानूनी प्रक्रिया है। जीआई टैग 10 वर्षों तक मान्य रहता है। यदि किसी वस्तु को जीआई टैग मिल जाता है, तो टैग का लाभ 10 वर्षों तक मिलता रहता है और 10 वर्ष पूरे हो जाने के बाद जीआई टैग को फिर से रिन्यू करना पड़ता है। अब ये भी जान लेते हैं कि जीआई टैग क्यों शुरू हुआ। दरअसल जब भारत का agreement World Trade Organization “WTO” से हुआ तो तब भारत में यह खतरा था कि कहीं अलग-अलग देश भारत के वस्तुओं की नकल न करें। क्योंकि भारत के मशहूर उत्पादों की नकल कर नकली सामान बाजार में खूब बेचे जाने लगे थे। इससे देश की धरोहर और विरासत को खतरा महसूस हो रहा था। इससे भारत की आर्थिक स्थिति के साथ-साथ भारत की संस्कृति पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता था इसीलिए अपने देश की धरोहर को बचाए रखने के लिए जीआई टैग को लागू किया गया था क्योंकि असली प्रोडक्ट्स की गरिमा को बनाए रखना जरुरी था।
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