हाथों का हुनर- handicraft industry

 

प्राचीन काल से ही हाथों की कला के कद्रदान विश्व भर में रहें हैं। चाहे चित्रकार हों, वाद्य वादन हों या मूर्तिकार हों। यह हस्तकला का क्षेत्र इतना विस्तृत है कि इसे कुछ ही कलाओं में समेटना अत्यधिक मुश्किल है। चलिए हस्तकला के क्षेत्र, इससे जुड़ी उलब्धियों और अवसरों की बात करें।

वस्त्र उद्योग-

मैसूर रेशम, मध्यप्रदेश की चंदेरी और कोसा सिल्क, लखनऊ की चिकन, बनारस की ब्रोकेड़ और जरी वाली रेशम की साड़ियाँ बंगाल का हाथ से बुना हुआ कपड़ा। यह सभी हाथों के हुनरमंद कारीगरों के हाथों की कला का ही तो जादू है जो वस्त्रों की बुनाई, कढ़ाई, सिलाई पर छा जाता है। देश-विदेश में हर जगह हाथ से बने हुए वस्त्रों की बहुत माँग रहती है। आजकल television, फिल्मों और ott के माध्यम से चरित्रों के व्यक्तित्व का ध्यान रखकर कारीगरों के पास काफ़ी काम होता है, जैसे south asian dramas में ott के माध्यम से, कलाकरों द्वारा पहने गए हल्के रंगों के कपड़ों और floral prints बहुत लोकप्रिय हो रहें है। ऐसे कई सारे बड़े नामचीन fashion designers के collections जो आप पसंद करतें हैं, follow करतें हैं उस कार्य में कई सारें वस्त्र उद्योग कारीगरों की मेहनत होती है।

जूट हस्तशिल्प-

पूरी दुनिया में जूट हस्तशिल्प में जूट कारीगरों ने अपनी खास जगह बनाई है। जूट शिल्प की विस्तृत bags, stationary, चूडियाँ और गहने, footwear, hangings और कई सामान शामिल हैं। पश्चिम बंगाल, असम और बिहार सबसे बड़े जूट उत्पादक हैं और भारत में जूट हस्तशिल्प बाजार के अगुवा भी हैं। भोपाल के गौहर महल में "राग भोपाली" 2020 के तहत जरी-जरद़ोजी और जूट के शिल्प और उत्पाद की चार दिवसीय प्रदर्शनी का उद्घाटन भी किया गया था।

लकड़ी हस्तशिल्प-

बहुत पहले से लकड़ी हस्तशिल्प भारत में प्रचलित था। कुशल कारीगरों द्वारा लकड़ी के टुकड़े को आकार देकर विभिन्न सामान बनाए जाते थे, विशेषकर उन जगहों पर तो काष्ठ उद्योग  अधिक प्रचलित रहता है जहाँ मौसम बहुत सर्द रहता हैं। गुजरात, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक, केरल और उत्तर प्रदेश अपने अनूठे लकड़ी के काम के लिए जाने जाते हैं। कुल्हाड़ी, खिलौने, बर्तन, सजावटी सामान, गहने और कई सजावटी घरेलू सामान जैसे लैंप शेड, मोमबत्ती स्टैंड, सिंदूर के बक्से, गहनों के बक्से, चूड़ी रखने का बक्सा आदि कुछ ऐसे सामान्य लकड़ी के शिल्प हैं जो लगभग हर भारतीय घर में उपयोग में आते हैं। शायद हर प्रचलन घूमकर वापस आता है, लकड़ी की कला तो बहुत पहले से ही मौजूद थी बस कुछ समय के लिए इस कला के कारीगरों के लिए यह व्यवसाय शिथिल पड़ गया था किंतु अब वापस से हाथों के हुनर को स्थान मिलने लगा है।

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