ईद-उल-फ़ित्र - रहमत की दुआ और अमन का पैग़ाम

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मुस्लिम समुदाय का सबसे बड़ा त्यौहार, ईद-उल-फ़ित्र(Eid-ul-Fitr), अमन, एकता और खुशियों का त्यौहार है। इस दिन अपनों के लिए दुआएं मांगते हैं और साथ ही खुदा की रहमत का शुक्रिया करते हैं। रमजान के महीने में सभी लोग रोजा रखते है, और एक महीने के कठिन उपवास के बाद, अंत में ईद का यह दिन बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस पर्व का अर्थ ही है खुशियां बांटना, इसीलिए ईद-उल-फ़ित्र को मीठी ईद भी कहा जाता है। आइए जानते हैं ईद से जुड़ीं कुछ खास बातें। 

यह बात हम सभी मानते हैं कि प्रत्येक पर्व या त्योहार के पीछे कोई परंपरागत लोक मान्यता एवं कल्याणकारी संदेश (Traditional beliefs and welfare messages) निहित होता है। इन पर्व व त्योहारों की श्रृंखला में मुस्लिम समुदाय (Muslim community) के लिए ईद का विशेष महत्व है। हम कह सकते हैं कि हिन्दुओं में जो स्थान 'दीपावली' का है, ईसाइयों में 'क्रिसमस' का है, वही स्थान मुस्लिमों में 'ईद' का है। हालांकि सबका इतिहास और कथाएं हैं। ईद का आगमन इस बात का सूचक भी है कि अब चारों तरफ खुशियों की लहर फैलने वाली है, जो सभी के जीवन को आनंद और उल्लास से भर देगी। ईद-उल-फ़ित्र का मकसद लोगों में बेपनाह खुशियां बांटना और आपसी प्रेम का पैगाम देना है। 

मुस्लिम समुदाय में एक वर्ष में दो ईदें मनाते हैं, पहली ईद रमजान (Ramadan) के रोजों की समाप्ति के अगले दिन मनाई जाती है जिसे ' ईद उल फित्र ' 'Eid ul Fitr' कहते हैं, वहीं दूसरी ईद हजरत इब्राहीम और हजरत इस्माइल (HAZRAT ABRAHAM and HAZRAT ISMAIL) द्वारा दिए गए महान बलिदानों की स्मृति में मनाई जाती है जिसे ‘इर्द-उल-अज़हा’ ( Eid-ul-Adha) कहा जाता है। 

ईद-उल-फ़ित्र अरबी भाषा (Arabic language) का शब्द है जिसका तात्पर्य इफ्तारी और फित्रे से है।  ईद का मकसद केवल अच्छे वस्त्र धारण करना और अच्छे पकवानों का सेवन ही नहीं बल्कि इसमें यह संदेश भी निहित है कि यदि खुशी प्राप्त करना चाहते हों तो इसका केवल यही उपाय है कि प्रभु या अल्लाह की आराधना करो और उन्हें प्रसन्न करो। 

ईद केवल हमारे देश में ही नहीं बल्कि दुनिया के अन्य देशों में भी एक विशिष्ट धार्मिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक (religious, cultural and spiritual) त्योहार के रूप में मनाया जाता है। 'अध्यात्म' का अर्थ है मनुष्य का खुदा से संबंधित होना है या स्वयं का स्वयं के साथ संबंधित होना इसलिए हम कह सकते हैं कि ईद मानव का खुदा से और स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार का पर्व है। 

ईद का यह त्योहार परोपकार एवं परमार्थ की प्रेरणा का सुन्दर अवसर भी है। कहा जाता है कि खुदा तभी प्रसन्न होता है, जब उसके जरूरतमंद बंदों की खिदमत की जाए, सेवा एवं सहयोग के उपक्रम किए जाएं, इसीलिए इसे दया और सद्भावना का दिन भी कहा जाता है। वास्तव में, ईद बुराइयों के विरुद्ध उठा एक प्रयत्न है और बिखरती मानवीय संवेदनाओं को जोड़ने का मकसद है। इसके साथ ही आनंद और उल्लास के इस पर्व का उद्देश्य मानव को मानव से जोड़ना भी है।

ईद की शुरुआत  

अगर इतिहास के पन्नों को पलटें तो ईद की शुरूआत मदीना नगर से हुई थी, जब पैगंबर मोहम्मद मक्का से मदीना आए थे। उस समय मोहम्मद साहब ने कुरान में दो पवित्र दिनों को ईद के लिए निर्धारित किया था। यही कारण है कि साल में दो बार ईद मनाने की परंपरा है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, ईद उल फ़ित्र की शुरूआत जंग-ए-बद्र (jang-e-badar) के बाद हुई थी। जिसमें पैगंबर मुहम्मद साहब की अगुवाई में मुसलमानों को जीत हासिल हुई थी। और इसी जीत की खुशी में लोगों ने ईद मनाई थी। ईद का त्योहार अमीर और गरीब सभी खुशी से मना सके इसके लिए इस्लाम में इस समय ग़रीबों को ज़कात और फितरा भी दिया जाता है। और साथ ही ईद के दिन लोग एक दूसरे से गले मिलकर आपसी प्यार को बढ़ाते हैं।

ईद-उल-फ़ित्र का महत्व  

ईद-उल-फ़ित्र के दिन लोग नमाज अदायगी करने के साथ ही खुदा का शुक्रिया अदा करते हैं। और फिर शुरू होता है ईद का त्योहार। लोग नए कपड़े पहनते हैं, खुशियां बांटते हैं। एक-दूसरे के यहां जाते हैं और गले मिलते हैं, इस दिन बधाईयों के साथ उपहारों का भी आदान-प्रदान होता है। लोगों के घरों में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं, खासतौर से मीठी सेवईंयां, जो ईद-उल-फ़ित्र की ट्रेडिशनल डिश है। हर मुस्लिम घर में आपको इस दिन मीठी खीर का स्वाद चखने को मिल जाएगा। इस दिन एक और खास काम जो लोग करते हैं वो है ज़कात यानी दान। इस दिन अपनी कमाई का एक हिस्सा दान किया जाता है। हालांकि, लोग अपनी क्षमता के हिसाब से दान करते हैं, जिससे इस त्यौहार की एहमियत और बढ़ जाती है।

इस प्रकार, ऊंच नीच, जात-पांत के भेद और रंग की सभी सीमाएं इस अवसर पर मिट जाती हैं और सभी को समान मनाकर इसदिन खुले मन से केवल खुशियां मनाई जाती हैं। हजरत मोहम्मद ने यह संदेश दिया है कि जो लोग साधन संपन्न होते हैं उनका कर्तव्य है कि वह निर्धनों और कमजोरों की यथासंभव सहायता करें। यदि आपके सामने कोई कमजोर या निर्धन है जिसके पास खाने और पहनने को कुछ न हो तो सब कुछ होते हुए भी आपकी खुशी निरर्थक है। इसलिए ईद की खुशियों में उन बेबस, लाचार और मजबूर लोगों को भी सम्मिलित करना जरूरी है, जिससे खुशियों में चार चाँद लग जाएँ। 

रमज़ान के प्रत्येक मुसलमान ईद की नमाज पढ़ने के लिए ईदगाहों में एकत्रित होते हैं और आपस में गले मिलते हैं, दान करते हैं। एक संतुलित एवं स्वस्थ समाज निर्माण का यह एक आदर्श तरीका है। ईद का संदेश मानव कल्याण और प्रेम की भावना को बढ़ाना ही है। 

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